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गुरु के दैवीकार्य में जो भागीदार होते हैं, वो गुरु के दैवी अनुभव में भी भागीदार हो जाते हैं ।
- पुज्य बापूजी
शास्त्रमार्ग पर चलने वाला तो कोई विरला ही तरता है परंतु गुरुमार्ग से जाने वाले सब के सब तर जाते हैं । जो भगवान को ढूँढने जाता है, वह भगवान को ढूँढता ही रहता है पर जो गुरु की सेवा करता है, उसको भगवान ढूँढने आते हैं कि वह कहाँ सेवा कर रहा है।
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